Soyabean MSP: केंद्र सरकार ने हाल ही में सोयाबीन किसानों के लिए एक बड़ा फैसला लिया है, जिससे उन्हें सीधा फायदा मिलने की उम्मीद है। सोयाबीन की फसल की कीमतों में पिछले कुछ समय से गिरावट देखी जा रही थी, जिसके कारण किसान लगातार अपनी मांग उठा रहे थे। इस बीच, सरकार ने सोयाबीन को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदने का निर्णय लिया है। यह कदम किसानों की आय में सुधार के लिए उठाया गया है।
Soyabean MSP सोयाबीन की न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि
सरकार ने कुछ समय पहले ही खरीफ फसलों की एमएसपी बढ़ाने का ऐलान किया था। सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4600 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 4892 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया था। हालांकि, बाजार में सोयाबीन के भाव लगातार घट रहे थे, जिसके कारण किसानों में असंतोष बढ़ रहा था। मंडियों में सोयाबीन का भाव करीब 4000 रुपए प्रति क्विंटल तक गिर गया था, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा था।
किसानों का आंदोलन और सरकार की प्रतिक्रिया
सोयाबीन की गिरती कीमतों से परेशान किसान कई दिनों से आंदोलन कर रहे थे। उनकी मांग थी कि सोयाबीन का भाव 6000 रुपए प्रति क्विंटल किया जाए। मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में किसानों ने विरोध प्रदर्शन किए और सरकार से उचित मूल्य की मांग की। इस आंदोलन को कांग्रेस और भाजपा के कुछ नेताओं का भी समर्थन मिला। इसी का परिणाम है कि केंद्र सरकार ने सोयाबीन की एमएसपी पर खरीदी का फैसला लिया है, जिससे किसानों को राहत मिलेगी।
एमएसपी पर खरीदी का निर्णय
सरकार ने किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए सोयाबीन की एमएसपी पर खरीदी के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसियों को निर्देशित किया है। यह खरीदी मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत होगी, जिसमें नेफेड (NAFED) और एनसीसीएफ (NCCF) जैसी एजेंसियां शामिल होंगी। इन एजेंसियों के जरिए किसानों से सोयाबीन की एमएसपी पर खरीदी की जाएगी, ताकि उन्हें सही दाम मिल सके और फसल बेचने में किसी तरह की दिक्कत न हो।
किन राज्यों में मिलेगी एमएसपी पर खरीदी की सुविधा?
सरकार ने सोयाबीन की एमएसपी पर खरीदी के लिए फिलहाल कुछ राज्यों को चुना है, जिसमें कर्नाटक, महाराष्ट्र, और तेलंगाना शामिल हैं। इन राज्यों में सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सोयाबीन की खरीदी शुरू करने का फैसला किया है। हालांकि, मध्य प्रदेश के किसानों को फिलहाल इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा, जिससे वहां के किसानों में नाराजगी बढ़ रही है। मध्य प्रदेश को “सोया प्रदेश” कहा जाता है, लेकिन यहां के किसानों को एमएसपी पर खरीदी की सुविधा न मिलने से वे निराश हैं।
किसानों की बढ़ती लागत और घटता मुनाफा
पिछले कुछ सालों में खेती की लागत में लगातार वृद्धि हो रही है। कृषि उपकरण, खाद, बीज और कीटनाशक महंगे हो गए हैं, लेकिन फसलों के दाम में वह बढ़ोतरी नहीं हो रही है। इससे किसानों की लागत भी पूरी नहीं निकल पा रही है। उदाहरण के तौर पर, सोयाबीन की खेती में खर्च लगातार बढ़ रहा है, लेकिन उसका उत्पादन मुनाफा नहीं दे पा रहा है।
सोयाबीन की खेती में होने वाला खर्च
एक बीघा जमीन पर सोयाबीन की खेती का खर्चा कुछ इस प्रकार है।
- जुताई का खर्च: लगभग 800 रुपए
- बीज और बोवनी: करीब 1250 रुपए
- खरपतवार नाशक: 500 रुपए
- कीटनाशक और टॉनिक: 2000 रुपए
- कटाई और थ्रेसिंग: 4000 रुपए
- मंडी तक भाड़ा: 500 रुपए
- *देखभाल और अन्य खर्चे: 2000 रुपए
इस प्रकार, एक बीघा में सोयाबीन की खेती पर कुल खर्चा 11,450 रुपए आता है। जबकि, एक बीघा में लगभग 3 क्विंटल सोयाबीन का उत्पादन होता है, जिसकी बाजार में कीमत करीब 12,000 रुपए होती है। इससे किसानों को बहुत कम मुनाफा होता है।
किसानों की मांगें और भविष्य की उम्मीद
किसानों का कहना है कि खेती की लागत लगातार बढ़ रही है, जबकि सोयाबीन के दाम कम हो रहे हैं। इस स्थिति में, एमएसपी पर खरीदी का निर्णय किसानों के लिए राहत लेकर आया है। हालांकि, मध्य प्रदेश के किसानों को अभी भी इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा है, जिससे वे नाराज हैं।
सरकार के इस फैसले से उम्मीद है कि सोयाबीन उत्पादक किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सकेगा और वे आर्थिक समस्याओं से कुछ हद तक निजात पा सकेंगे। आने वाले समय में यह देखना होगा कि सरकार अन्य राज्यों में भी एमएसपी पर खरीदी की सुविधा शुरू करती है या नहीं, जिससे सभी किसानों को समान लाभ मिल सके।
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