Soyabean Price: मध्यप्रदेश में सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों की स्थिति इन दिनों काफी चिंताजनक हो गई है। सोयाबीन की फसल के भाव पिछले दस सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं, जिससे किसानों में गहरा असंतोष फैल गया है। सोयाबीन के इस मूल्य संकट को लेकर राज्य भर के किसान अब एक बड़े आंदोलन की तैयारी में हैं, जिसमें 5000 से अधिक गांव शामिल होंगे।
सोयाबीन के भाव में गिरावट
मध्यप्रदेश में सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने पर होती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सोयाबीन के दाम में लगातार गिरावट आ रही है। साल 2013-14 में जो दाम थे, वही आज भी किसानों को मिल रहे हैं। इस साल सोयाबीन की कीमत 3500 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई है, जो कि उत्पादन लागत को पूरा करने के लिए बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं है। आज की महंगाई के दौर में जहां खाद, बीज, और कीटनाशक जैसे कृषि संसाधनों की कीमतें आसमान छू रही हैं, किसानों को उचित मुनाफा मिलना तो दूर, उनकी लागत भी निकलना मुश्किल हो गया है।
समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की मांग
किसानों की मांग है कि सरकार को सोयाबीन का समर्थन मूल्य बढ़ाना चाहिए। मौजूदा समर्थन मूल्य 4892 रुपये है, लेकिन इस महंगाई के दौर में यह मूल्य किसानों की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहा है। इसलिए किसान संगठन मांग कर रहे हैं कि सोयाबीन के समर्थन मूल्य पर 1108 रुपये का अतिरिक्त बोनस दिया जाए, जिससे इसका मूल्य 6000 रुपये प्रति क्विंटल हो सके।
सोशल मीडिया पर बढ़ता किसान आंदोलन
सोयाबीन के इस संकट से परेशान किसान अब सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। किसान संगठनों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके जनता और सरकार का ध्यान इस मुद्दे पर खींचा है। वे अपनी पोस्टों के जरिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं और इस आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
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आंदोलन की रूपरेखा और गांवों में योजना
आंदोलन का पहला चरण सितंबर के पहले सप्ताह में शुरू होगा, जहां हर गांव में ग्राम पंचायत सचिव को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया जाएगा। इस ज्ञापन में सोयाबीन के समर्थन मूल्य को बढ़ाकर 6000 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग की जाएगी। संयुक्त किसान मोर्चा ने इस आंदोलन के लिए करीब 5000 गांवों का चयन किया है, जबकि अन्य गांवों में भी किसानों से संपर्क किया जा रहा है ताकि इस आंदोलन को और अधिक व्यापक बनाया जा सके।
किसान संगठनों का एकजुटता
इस आंदोलन की सबसे खास बात यह है कि इसमें सभी किसान संगठन एक साथ आकर शामिल हो रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से किसान लगातार भारी वर्षा और प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहे हैं, जिससे उनकी फसलें बर्बाद हो रही हैं। इसके बावजूद किसानों ने सोयाबीन की खेती जारी रखी है, क्योंकि वे देश को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। लेकिन सरकार की आयात-निर्यात नीतियों के चलते जब भी किसानों की फसल तैयार होकर बाजार में पहुंचती है, तो या तो निर्यात बंद कर दिया जाता है या आयात खोल दिया जाता है। ऐसे में कीमतों में गिरावट आ जाती है, जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।
क्यों हो रहा है 5000 गांवों पर फोकस?
इस आंदोलन के लिए विशेष रूप से 5000 गांवों का चयन इसलिए किया गया है क्योंकि यहां सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने पर होती है और किसानों का इस फसल से जुड़ा हुआ जीवन-यापन है। इन गांवों में आंदोलन की शुरुआत करने से उम्मीद है कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार किसानों की मांगों पर जल्द से जल्द ध्यान देंगी। इसके अलावा, ये गांव इस आंदोलन की सफलता की कुंजी माने जा रहे हैं, क्योंकि यहां के किसान संगठनों ने अपने गांवों में अच्छी खासी जागरूकता फैलाई है।
आगे की रणनीति
आंदोलन का यह पहला चरण है, जिसमें ज्ञापन देकर सरकार से किसानों की मांगों को सामने रखा जाएगा। अगर सरकार किसानों की मांगों को नहीं मानती है, तो किसान संगठन अगले चरण में और भी बड़े आंदोलन की योजना बना रहे हैं।
मध्यप्रदेश के किसानों का यह आंदोलन केवल सोयाबीन की कीमतों को लेकर ही नहीं है, बल्कि यह सरकार से उनके जीवन और अस्तित्व की रक्षा की गुहार भी है। किसानों की इस एकजुटता से स्पष्ट है कि अब वे अपनी समस्याओं को लेकर गंभीर हैं और अपने हक के लिए संघर्ष करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। अब देखना यह है कि सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है और किसानों के इस आंदोलन को कितना गंभीरता से लेती है।
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